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रामधारी सिंह "दिनकर"

है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके वीर नर के मग में? खम ठोंक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़। मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है।

Jaishankarprasad 160x194

जयशंकर प्रसाद

जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।। सरल तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरुशिखा मनोहर। छिटका जीवन हरियाली पर, मंगल कुंकुम सारा ...

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रवीन्द्रनाथ ठाकुर

सुख भरे दिनों में सिर झुकाए तुम्हारा मुख मैं पहचान लूंगा, दुखभरी रातों में समस्त धरा जिस दिन करे वंचना कभी ना करूँ, मैं तुम पर संशय।

सबसे लोकप्रिय

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तुम और मैं

तुम तुंग - हिमालय - श्रृंग और मैं चंचल-गति सुर-सरिता ...

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तुम हमारे हो

नहीं मालूम क्यों यहाँ आया ठोकरें खाते हु‌ए दिन बीते। उठा तो पर न सँभलने पाया गिरा व रह गया आँसू पीते ...

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लू के झोंकों झुलसे हुए...

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो, भरा दौंगरा उन्ही पर गिरा ...

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स्नेह-निर्झर बह गया है...

स्नेह-निर्झर बह गया है ! रेत ज्यों तन रह गया है ...

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गहन है यह अंधकारा

गहन है यह अंधकारा; स्वार्थ के अवगुंठनों से हुआ है लुंठन हमारा ...

आज पढ़ें

तस्वीर तेरी दिल मेरा बहला न सकेगी

तस्वीर तेरी दिल मेरा बहला न सकेगी ये तेरी तरह मुझ से तो शर्मा न सकेगी ...

Mahadevivarma1 274x152

पंथ होने दो अपरिचित

पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला ...

Dushyantkumar 180x120

कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक...

ख़ुदा नहीं न सही आदमी का ख़्वाब सही कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिये

Amirkhusro 180x120

काहे को ब्याहे बिदेस

काहे को ब्याहे बिदेस, अरे, लखिय बाबुल मोरे काहे को ब्याहे बिदेस ...

Maithilisharangupt 180x120

सखि, वे मुझसे कहकर जाते

मुझको बहुत उन्होंने माना फिर भी क्या पूरा पहचाना?

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दिनकर जी की आवाज में

दिनकर जी की आवाज़ में नील कुसुम की कुछ पंक्तियाँ ... (श्रोत: बीबीसी हिंदी)

रचनाएँ

Suryakanttripathinirala 366x226

तुम और मैं

तुम तुंग - हिमालय - श्रृंग और मैं चंचल-गति सुर-सरिता ...

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तुम हमारे हो

नहीं मालूम क्यों यहाँ आया ठोकरें खाते हु‌ए दिन बीते। उठा तो पर न सँभलने पाया गिरा व रह गया आँसू पीते ...

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लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो, भरा दौंगरा उन्ही पर गिरा ...

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स्नेह-निर्झर बह गया है

स्नेह-निर्झर बह गया है ! रेत ज्यों तन रह गया है ...

गहन है यह अंधकारा

गहन है यह अंधकारा; स्वार्थ के अवगुंठनों से हुआ है लुंठन हमारा ...

Suryakanttripathinirala 366x226

भर देते हो

भर देते हो बार-बार, प्रिय, करुणा की किरणों से क्षुब्ध हृदय को पुलकित कर देते हो ...