अपना गम सबको बताना है तमाशा करना, हाल-ऐ- दिल उसको सुनाएँगे वो जब पूछेगा ...
जी बहुत चाहता है सच बोलें, क्या करें हौसला नहीं होता ...
बिछड़े हुए मिलते हैं जब बर्फ़ पिघलती है ...
मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो ख़फ़ा ही लगे ...
न जी भर के देखा न कुछ बात की बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की...
तुम तुंग - हिमालय - श्रृंग और मैं चंचल-गति सुर-सरिता ...
नहीं मालूम क्यों यहाँ आया ठोकरें खाते हुए दिन बीते। उठा तो पर न सँभलने पाया गिरा व रह गया आँसू पीते ...
लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो, भरा दौंगरा उन्ही पर गिरा ...
स्नेह-निर्झर बह गया है ! रेत ज्यों तन रह गया है ...
गहन है यह अंधकारा; स्वार्थ के अवगुंठनों से हुआ है लुंठन हमारा ...