अहमद फ़राज़

अहमद फ़राज़

अहमद फ़राज़ (१४ जनवरी १९३१- २५ अगस्त २००८), असली नाम सैयद अहमद शाह, का जन्म पाकिस्तान के नौशेरां शहर में हुआ था। वे आधुनिक उर्दू के सर्वश्रेष्ठ रचनाकारों में गिने जाते हैं।

उन्होंने पेशावर विश्वविद्यालय में फ़ारसी और उर्दू विषय का अध्ययन किया था। बाद में वे वहीं प्राध्यापक भी हो गए थे। शायरी का शौक उन्हें बचपन से था। वे अंत्याक्षरी की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया करते थे। लेखन के प्रारंभिक काल में वे इक़बाल की रचनाओं से प्रभावित रहे। फिर धीरे धीरे प्रगतिवादी कविता को पसंद करने लगे। अली सरदार जाफरीऔर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के पदचिह्नों पर चलते हुए उन्होंने जियाउल हक के शासन के समय कुछ ऐसी गज़लें लिखकर मुशायरों में पढ़ीं जिनके कारण उन्हें जेल में भी रहना पड़ा। इसी समय वे कई साल पाकिस्तान से दूर संयुक्त राजशाही और कनाडा देशों में रहे।

 

 



इस लेखक की रचनाएँ

शोला था जल-बुझा हूँ, हवायें मुझे न दो

जो ज़हर पी चुका हूँ तुम्हीं ने मुझे दिया अब तुम तो ज़िन्दगी की दुआयें मुझे न दो ...

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं

तू सामने है तो फिर क्यों यकीं नहीं आता यह बार बार जो आँखों को मल के देखते हैं ...

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें

अब न वो मैं हूँ न तू है न वो माज़ी है "फ़राज़" जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें

ख़ामोश हो क्यों दाद-ए-ज़फ़ा क्यूँ नहीं देते

रहबर हो तो मन्ज़िल का पता क्यूँ नहीं देते ...

रंजिश ही सही

रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ...

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तुम और मैं

तुम तुंग - हिमालय - श्रृंग और मैं चंचल-गति सुर-सरिता ...

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नहीं मालूम क्यों यहाँ आया ठोकरें खाते हु‌ए दिन बीते। उठा तो पर न सँभलने पाया गिरा व रह गया आँसू पीते ...

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लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो, भरा दौंगरा उन्ही पर गिरा ...

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स्नेह-निर्झर बह गया है ! रेत ज्यों तन रह गया है ...

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गहन है यह अंधकारा; स्वार्थ के अवगुंठनों से हुआ है लुंठन हमारा ...

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