हर चोरी से भयानक यह सपनों की चोरी है ...
मेरे शहर की हर गली संकरी मेरे शहर की हर छत नीची मेरे शहर की हर दीवार चुगली ...
यह कैसी चुप है कि जिसमें पैरों की आहट शामिल है कोई चुपके से आया है
आज सूरज ने कुछ घबरा कर रोशनी की एक खिड़की खोली बादल की एक खिड़की बंद की और अंधेरे की सीढियां उतर गया….
सभी कैदों में नज़र आते हैं हुस्न और इश्क को चुराने वाले और वारिस कहां से लाएं हीर की दास्तान गाने वाले...
तुम तुंग - हिमालय - श्रृंग और मैं चंचल-गति सुर-सरिता ...
नहीं मालूम क्यों यहाँ आया ठोकरें खाते हुए दिन बीते। उठा तो पर न सँभलने पाया गिरा व रह गया आँसू पीते ...
लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो, भरा दौंगरा उन्ही पर गिरा ...
स्नेह-निर्झर बह गया है ! रेत ज्यों तन रह गया है ...
गहन है यह अंधकारा; स्वार्थ के अवगुंठनों से हुआ है लुंठन हमारा ...