शोला था जल-बुझा हूँ, हवायें मुझे न दो

जो ज़हर पी चुका हूँ तुम्हीं ने मुझे दिया अब तुम तो ज़िन्दगी की दुआयें मुझे न दो ...

शोला था जल-बुझा हूँ, हवायें मुझे न दो

अहमद फ़राज़



शोला था जल-बुझा हूँ हवायें मुझे न दो 

मैं कब का जा चुका हूँ सदायें मुझे न दो

 

जो ज़हर पी चुका हूँ तुम्हीं ने मुझे दिया 

अब तुम तो ज़िन्दगी की दुआयें मुझे न दो 

 

ऐसा कहीं न हो के पलटकर न आ सकूँ 

हर बार दूर जा के सदायें मुझे न दो 

 

कब मुझ को ऐतेराफ़-ए-मुहब्बत न था "फ़राज़"

कब मैं ने ये कहा था सज़ायें मुझे न दो