एक बार नदी बोली

एक बार नदी बोली ! मैँ यूँ ही अविरल बहती जाऊँ ।..

20110517at103428 600x350

नदी

एक बार नदी बोली !

मैँ यूँ ही अविरल बहती जाऊँ ।

अपने तट पर गाँव शहर बसाऊँ ।

बिना किये तुमसे कोई आशा ।

मैँ तृप्त करूँ सबकी अभिलाषा ।

मेरे जल से तुम फसल उगाओ ।

लहराती फसल देख मुस्कुराओ ।

भर जाये अन्न से तुम्हारी झोली !

एक बार नदी बोली !

पर्वत शिखरोँ पर जन्म हुआ मेरा ।

चाँदी सा उज्जवल था तन मेरा ।

इठलाती बलखाती मैँ गाती थी ।

अपने यौवन पर मैँ इतराती थी ।

अपने जल मेँ मुखड़ा निहार लेती थी ।

सबको मैँ जल का दान देती थी ।

लेकिन तुमने बना दिया मुझे मटमैली !

एक बार नदी बोली !

तुमको पाला मैने शिशु समान ।

तुम मेँ भरा जीवन का ज्ञान ।

तुमने भी अपना फर्ज निभाया ।

माता कहकर मुझको बुलाया ।

माँ की छवि ही गंदी कर दी ।

तुमने मुझमेँ अस्वच्छता भर दी ।

सोचा होगा माँ तो होती है भोली !

एक बार नदी बोली !

DISCUSSION

blog comments powered by Disqus

सबसे लोकप्रिय

poet-image

तुम और मैं

तुम तुंग - हिमालय - श्रृंग और मैं चंचल-गति सुर-सरिता ...

poet-image

तुम हमारे हो

नहीं मालूम क्यों यहाँ आया ठोकरें खाते हु‌ए दिन बीते। उठा तो पर न सँभलने पाया गिरा व रह गया आँसू पीते ...

poet-image

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो, भरा दौंगरा उन्ही पर गिरा ...

poet-image

स्नेह-निर्झर बह गया है

स्नेह-निर्झर बह गया है ! रेत ज्यों तन रह गया है ...

poet-image

गहन है यह अंधकारा

गहन है यह अंधकारा; स्वार्थ के अवगुंठनों से हुआ है लुंठन हमारा ...

ad-image