भारति, जय, विजय करे कनक-शस्य-कमल धरे ...
चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ, चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ ...
हाय, राष्ट्र-मन्दिर में जाकर, तुमने पत्थर का प्रभू खोजा! लगे माँगने जाकर रक्षा और स्वर्ण-रूपे का बोझा ...
असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी सपूत मातृभूमि के- रुको न शूर साहसी ...
प्राण का चन्दन तुम्हारे किस चरण तल पर लगाऊँ? ...
तन की स्वतंत्रता चरित्र का निखार है मन की स्वतंत्रता विचार की बहार है घर की स्वतंत्रता समाज का सिंगार है पर देश की स्वतंत्रता अमर पुकार है ...
अमर तिरंगा ध्वज उछालकर नवयुग ने ललकारा है।। भारत-भू ने जन्म दिया है यह सौभाग्य हमारा है ...
श्वासों में हैं वेद-ऋचाएँ वाणी में है गीता का स्वर। ऐ संसृति की आदि तपस्विनि, तेजस्विनि अभिराम। मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम ...
एक ध्वज लिये हुए एक प्रण किये हुए मातृ भूमि के लिये पितृ भूमि के लिये वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो ...
हमारी देश की माटी अनोखी मूर्ति वह गढ़ती. धरा क्या स्वर्ग से भी जो गगन सोपान पर चढ़ती ...
तुम तुंग - हिमालय - श्रृंग और मैं चंचल-गति सुर-सरिता ...
नहीं मालूम क्यों यहाँ आया ठोकरें खाते हुए दिन बीते। उठा तो पर न सँभलने पाया गिरा व रह गया आँसू पीते ...
लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो, भरा दौंगरा उन्ही पर गिरा ...
स्नेह-निर्झर बह गया है ! रेत ज्यों तन रह गया है ...
गहन है यह अंधकारा; स्वार्थ के अवगुंठनों से हुआ है लुंठन हमारा ...