प्यार

तुम और मैं

तुम और मैं

तुम तुंग - हिमालय - श्रृंग और मैं चंचल-गति सुर-सरिता ...

तुम मिले

तुम मिले

एक युग, एक दिन, एक पल, एक क्षण पर गगन से उतर चंचला आ गई ...

प्रेयसी

प्रेयसी

घेर अंग-अंग को लहरी तरंग वह प्रथम तारुण्य की, ज्योतिर्मयि-लता-सी हुई मैं तत्काल घेर निज तरु-तन ...

तुम्हारे बिना आरती का दीया यह

तुम्हारे बिना आरती का दीया यह

कहाँ दीप है जो किसी उर्वशी की किरन-उंगलियों को छुए बिना जला हो ...

रेखा

रेखा

यौवन के तीर पर प्रथम था आया जब श्रोत सौन्दर्य का, वीचियों में कलरव सुख चुम्बित प्रणय का था मधुर आकर्षणमय ...

नए साल में

नए साल में

नए साल में प्यार लिखा है तुम भी लिखना ...

चाँद को देखो

चाँद को देखो

लाभ अपना वासना पहचानती है किन्तु मिटना प्रीति केवल जानती है ...

लिखे जो ख़त तुझे

लिखे जो ख़त तुझे

कोई नगमा कहीं गूँजा, कहा दिल ने के तू आई

प्रेम को न दान दो

प्रेम को न दान दो

प्रेमहीन गति, प्रगति विरुद्ध है ...

उक्ति

उक्ति

कुछ न हुआ, न हो मुझे विश्व का सुख, श्री, यदि केवल पास तुम रहो ...

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तुम और मैं

तुम तुंग - हिमालय - श्रृंग और मैं चंचल-गति सुर-सरिता ...

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तुम हमारे हो

नहीं मालूम क्यों यहाँ आया ठोकरें खाते हु‌ए दिन बीते। उठा तो पर न सँभलने पाया गिरा व रह गया आँसू पीते ...

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लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो, भरा दौंगरा उन्ही पर गिरा ...

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स्नेह-निर्झर बह गया है

स्नेह-निर्झर बह गया है ! रेत ज्यों तन रह गया है ...

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गहन है यह अंधकारा

गहन है यह अंधकारा; स्वार्थ के अवगुंठनों से हुआ है लुंठन हमारा ...

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