विरह

पंथ होने दो अपरिचित

पंथ होने दो अपरिचित

पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला ...

किसी का दीप निष्ठुर हूँ

किसी का दीप निष्ठुर हूँ

शलभ मैं शपमय वर हूँ! किसी का दीप निष्ठुर हूँ ...

तुम्हारे बिना आरती का दीया यह

तुम्हारे बिना आरती का दीया यह

कहाँ दीप है जो किसी उर्वशी की किरन-उंगलियों को छुए बिना जला हो ...

न रवा कहिये न सज़ा कहिये

न रवा कहिये न सज़ा कहिये

दिल में रखने की बात है ग़म-ए-इश्क़ इस को हर्गिज़ न बर्मला कहिये ...

उज्र् आने में भी है और बुलाते भी नहीं

उज्र् आने में भी है और बुलाते भी नहीं

ख़ूब परदा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं

कल सहसा यह सन्देश मिला

कल सहसा यह सन्देश मिला

सुख की तन्मयता तुम्हें मिली, पीड़ा का मिला प्रमाद मुझे फिर एक कसक बनकर अब क्यों तुम कर लेती हो याद मुझे? ...

सबसे लोकप्रिय

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तुम और मैं

तुम तुंग - हिमालय - श्रृंग और मैं चंचल-गति सुर-सरिता ...

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तुम हमारे हो

नहीं मालूम क्यों यहाँ आया ठोकरें खाते हु‌ए दिन बीते। उठा तो पर न सँभलने पाया गिरा व रह गया आँसू पीते ...

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लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो, भरा दौंगरा उन्ही पर गिरा ...

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स्नेह-निर्झर बह गया है

स्नेह-निर्झर बह गया है ! रेत ज्यों तन रह गया है ...

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गहन है यह अंधकारा

गहन है यह अंधकारा; स्वार्थ के अवगुंठनों से हुआ है लुंठन हमारा ...

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