देश

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भारती वन्दना

भारती, जय, विजय करे कनक-शस्य-कमल धरे! लंका पदतल-शतदल गर्जितोर्मि सागर-जल धोता शुचि चरण-युगल स्तव कर बहु अर्थ भरे! तरु-तण वन-लता-वसन अंचल में खचित सुमन गंगा ज्योतिर्जल-कण धवल-धार हार लगे! मुकुट शुभ्र हिम-तुषार प्राण प्रणव ओंकार ध्वनित दिशाएँ उदार शतमुख-शतरव-मुखरे!

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पुष्प की अभिलाषा

चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ, चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ, चाह नहीं, सम्राटों के शव पर, हे हरि, डाला जाऊँ चाह नहीं, देवों के सिर पर, चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ! मुझे तोड़ लेना वनमाली! उस पथ पर देना तुम फेंक, मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जावें वीर अनेक।

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अमर राष्ट्र

छोड़ चले, ले तेरी कुटिया, यह लुटिया-डोरी ले अपनी, फिर वह पापड़ नहीं बेलने; फिर वह माल पडे न जपनी। यह जागृति तेरी तू ले-ले, मुझको मेरा दे-दे सपना, तेरे शीतल सिंहासन से सुखकर सौ युग ज्वाला तपना। सूली का पथ ही सीखा हूँ, सुविधा सदा बचाता आया, मैं बलि-पथ का अंगारा हूँ, जीवन-ज्वाल जलाता आया। एक फूँक, मेरा अभिमत है, फूँक चलूँ जिससे नभ जल थल, मैं तो हूँ बलि-धारा-पन्थी, फेंक चुका कब का गंगाजल। इस चढ़ाव पर चढ़ न सकोगे, इस उतार से जा...

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हिमाद्रि तुंग शृंग से

हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती  स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती  'अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़- प्रतिज्ञ सोच लो,  प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो!'    असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी  सपूत मातृभूमि के- रुको न शूर साहसी!  अराति सैन्य सिंधु में, सुवाड़वाग्नि से जलो,  प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो, बढ़े चलो!

Sohanlaldwivedi 275x153.jpg

वंदना

वंदिनी तव वंदना में  कौन सा मैं गीत गाऊँ?   स्वर उठे मेरा गगन पर,  बने गुंजित ध्वनित मन पर,  कोटि कण्ठों में तुम्हारी  वेदना कैसे बजाऊँ?   फिर, न कसकें क्रूर कड़ियाँ,  बनें शीतल जलन-घड़ियाँ,  प्राण का चन्दन तुम्हारे  किस चरण तल पर लगाऊँ?   धूलि लुiण्ठत हो न अलकें,  खिलें पा नवज्योति पलकें,  दुर्दिनों में भाग्य की  मधु चंद्रिका कैसे खिलाऊँ?   तुम उठो माँ! पा नवल बल,  दीप्त हो फिर भाल उज्ज्वल!  इस निबिड़ नीरव निशा में  किस उषा...

Gopalsinghnepali 275x153.jpg

नवीन कल्पना करो

निज राष्ट्र के शरीर के सिंगार के लिए तुम कल्पना करो, नवीन कल्पना करो, तुम कल्पना करो।   अब देश है स्वतंत्र, मेदिनी स्वतंत्र है  मधुमास है स्वतंत्र, चाँदनी स्वतंत्र है  हर दीप है स्वतंत्र, रोशनी स्वतंत्र है  अब शक्ति की ज्वलंत दामिनी स्वतंत्र है  लेकर अनंत शक्तियाँ सद्य समृद्धि की- तुम कामना करो, किशोर कामना करो, तुम कल्पना करो। तन की स्वतंत्रता चरित्र का निखार है  मन की स्वतंत्रता विचार की बहार है  घर की स्वतंत्रता समाज का सिंगार...

Aarsi prasad singh 275x153.jpg

राष्ट्रगीत

सारे जग को पथ दिखलाने- वाला जो ध्रुव तारा है। भारत-भू ने जन्म दिया है, यह सौभाग्य हमारा है।। धूप खुली है, खुली हवा है। सौ रोगों की एक दवा है। चंदन की खुशबू से भीगा- भीगा आँचल सारा है।। जन्म-भूमि से बढ़कर सुंदर, कौन देश है इस धरती पर। इसमें जीना भी प्यारा है, इसमें मरना भी प्यारा है।। चाहे आँधी शोर मचाए, चाहे बिजली आँख दिखाए। हम न झुकेंगे, हम न रुकेंगे, यही हमारा नारा है।। पर्वत-पर्वत पाँव बढ़ाता। सागर की लहरों पर गाता। आसमान में...

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मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम

मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम ऐ अमरों की जननी, तुमको शत-शत बार प्रणाम, मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम। तेरे उर में शायित गांधी, 'बुद्ध औ' राम, मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।   हिमगिरि-सा उन्नत तव मस्तक, तेरे चरण चूमता सागर, श्वासों में हैं वेद-ऋचाएँ वाणी में है गीता का स्वर। ऐ संसृति की आदि तपस्विनि, तेजस्विनि अभिराम। मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।   हरे-भरे हैं खेत सुहाने, फल-फूलों से युत वन-उपवन, तेरे अंदर भरा हुआ है ...

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वीर तुम बढ़े चलो

वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!   हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं  वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!   सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो  तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं  वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!   प्रात हो कि रात हो संग हो न साथ हो सूर्य से बढ़े चलो चन्द्र से बढ़े चलो वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!   एक ध्वज लिये हुए एक प्रण किये हुए मातृ भूमि...

Aarsi prasad singh 275x153.jpg

हमारा देश

हमारा देश भारत है नदी गोदावरी गंगा. लिखा भूगोल पर युग ने हमारा चित्र बहुरंगा.   हमारी देश की माटी अनोखी मूर्ति वह गढ़ती. धरा क्या स्वर्ग से भी जो गगन सोपान पर चढ़ती.   हमारे देश का पानी हमें वह शक्ति है देता. भरत सा एक बालक भी पकड़ वनराज को लेता.   जहां हर सांस में फूले सुमन मन में महकते हैं. जहां ऋतुराज के पंछी मधुर स्वर में चहकते हैं.   हमारी देश की धरती बनी है अन्नपूर्णा सी. हमें अभिमान है इसका कि हम इस देश...

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कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो। श्रवण...

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रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

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भारत महिमा

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...

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लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो

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