प्यार

Makhanlal chaturvedi 275x153.jpg

तुम मिले

तुम मिले, प्राण में रागिनी छा गई! भूलती-सी जवानी नई हो उठी, भूलती-सी कहानी नई हो उठी, जिस दिवस प्राण में नेह बंसी बजी, बालपन की रवानी नई हो उठी। किन्तु रसहीन सारे बरस रसभरे हो गए जब तुम्हारी छटा भा गई। तुम मिले, प्राण में रागिनी छा गई। घनों में मधुर स्वर्ण-रेखा मिली, नयन ने नयन रूप देखा, मिली- पुतलियों में डुबा कर नज़र की कलम नेह के पृष्ठ को चित्र-लेखा मिली; बीतते-से दिवस लौटकर आ गए बालपन ले जवानी संभल आ गई। तुम मिले, प्राण में...

Suryakant tripathi nirala 275x153.jpg

प्रेयसी

घेर अंग-अंग को लहरी तरंग वह प्रथम तारुण्य की, ज्योतिर्मयि-लता-सी हुई मैं तत्काल घेर निज तरु-तन। खिले नव पुष्प जग प्रथम सुगन्ध के, प्रथम वसन्त में गुच्छ-गुच्छ। दृगों को रँग गयी प्रथम प्रणय-रश्मि- चूर्ण हो विच्छुरित विश्व-ऐश्वर्य को स्फुरित करती रही बहु रंग-भाव भर शिशिर ज्यों पत्र पर कनक-प्रभात के, किरण-सम्पात से। दर्शन-समुत्सुक युवाकुल पतंग ज्यों विचरते मञ्जु-मुख गुञ्ज-मृदु अलि-पुञ्ज मुखर उर मौन वा स्तुति-गीत में हरे। प्रस्रवण झरते...

Gopaldasneeraj 275x153.jpg

तुम्हारे बिना आरती का दीया यह

तुम्हारे बिना आरती का दीया यह न बुझ पा रहा है न जल पा रहा है। भटकती निशा कह रही है कि तम में दिए से किरन फूटना ही उचित है, शलभ चीखता पर बिना प्यार के तो विधुर सांस का टूटना ही उचित है, इसी द्वंद्व में रात का यह मुसाफिर  न रुक पा रहा है, न चल पा रहा है। तुम्हारे बिना आरती का दिया यह न बुझ पा रहा है, न जल पा रहा है।  मिलन ने कहा था कभी मुस्करा कर हँसो फूल बन विश्व-भर को हँसाओ, मगर कह रहा है विरह अब सिसक कर झरा रात-दिन अश्रु के शव...

Suryakant tripathi nirala 275x153.jpg

रेखा

यौवन के तीर पर प्रथम था आया जब श्रोत सौन्दर्य का, वीचियों में कलरव सुख चुम्बित प्रणय का था मधुर आकर्षणमय, मज्जनावेदन मृदु फूटता सागर में। वाहिनी संसृति की आती अज्ञात दूर चरण-चिन्ह-रहित स्मृति-रेखाएँ पारकर, प्रीति की प्लावन-पटु, क्षण में बहा लिया— साथी मैं हो गया अकूल का, भूल गया निज सीमा, क्षण में अज्ञानता को सौंप दिये मैंने प्राण बिना अर्थ,--प्रार्थना के। तापहर हृदय वेग लग्न एक ही स्मृति में; कितना अपनाव?— प्रेमभाव बिना भाषा का,...

Dr ashwaghosh 275x153.jpg

नए साल में

नए साल में प्यार लिखा है तुम भी लिखना प्यार प्रकृति का शिल्प काव्यमय ढाई आखर प्यार सृष्टि पयार्य सभी हम उसके चाकर प्यार शब्द की मयार्दा हित बिना मोल, मीरा-सी-बिकना प्यार समय का कल्प मदिर-सा लोक व्याकरण प्यार सहज संभाव्य दृष्टि का मौन आचरण प्यार अमल है ताल कमल-सी,  उसमें दिखना।

Aarsi prasad singh 275x153.jpg

चाँद को देखो

चाँद को देखो चकोरी के नयन से माप चाहे जो धरा की हो गगन से।   मेघ के हर ताल पर   नव नृत्य करता   राग जो मल्हार   अम्बर में उमड़ता आ रहा इंगित मयूरी के चरण से चाँद को देखो चकोरी के नयन से।   दाह कितनी   दीप के वरदान में है   आह कितनी   प्रेम के अभिमान में है पूछ लो सुकुमार शलभों की जलन से चाँद को देखो चकोरी के नयन से।   लाभ अपना   वासना पहचानती है   किन्तु मिटना   प्रीति केवल जानती है माँग ला रे अमृत जीवन का मरण से चाँद...

Gopaldasneeraj 275x153.jpg

लिखे जो ख़त तुझे

लिखे जो ख़त तुझे वो तेरी याद में हज़ारों रंग के नज़ारे बन गए सवेरा जब हुआ तो फूल बन गए जो रात आई तो सितारे बन गए कोई नगमा कहीं गूँजा, कहा दिल ने के तू आई कहीं चटकी कली कोई, मैं ये समझा तू शरमाई कोई ख़ुशबू कहीं बिख़री, लगा ये ज़ुल्फ़ लहराई फ़िज़ा रंगीं अदा रंगीं, ये इठलाना ये शरमाना ये अंगड़ाई ये तनहाई, ये तरसा कर चले जाना बना दे ना कहीं मुझको, जवां जादू ये दीवाना जहाँ तू है वहाँ मैं हूँ, मेरे दिल की तू धड़कन है मुसाफ़िर मैं...

Gopaldasneeraj 275x153.jpg

प्रेम को न दान दो

प्रेम को न दान दो, न दो दया, प्रेम तो सदैव ही समृद्ध है।   प्रेम है कि ज्योति-स्नेह एक है, प्रेम है कि प्राण-देह एक है, प्रेम है कि विश्व गेह एक है,   प्रेमहीन गति, प्रगति विरुद्ध है। प्रेम तो सदैव ही समृद्ध है॥   प्रेम है इसीलिए दलित दनुज, प्रेम है इसीलिए विजित दनुज, प्रेम है इसीलिए अजित मनुज,   प्रेम के बिना विकास वृद्ध है। प्रेम तो सदैव ही समृद्ध है॥   नित्य व्रत करे नित्य तप करे, नित्य वेद-पाठ...

Suryakant tripathi nirala 275x153.jpg

उक्ति

कुछ न हुआ, न हो मुझे विश्व का सुख, श्री, यदि केवल पास तुम रहो! मेरे नभ के बादल यदि न कटे- चन्द्र रह गया ढका, तिमिर रात को तिरकर यदि न अटे लेश गगन-भास का, रहेंगे अधर हँसते, पथ पर, तुम हाथ यदि गहो। बहु-रस साहित्य विपुल यदि न पढ़ा-- मन्द सबों ने कहा, मेरा काव्यानुमान यदि न बढ़ा-- ज्ञान, जहाँ का रहा, रहे, समझ है मुझमें पूरी, तुम कथा यदि कहो।

Bhagwati charan verma 275x153.jpg

मानव

जब किलका को मादकता में हंस देने का वरदान मिला जब सरिता की उन बेसुध सी लहरों को कल कल गान मिला   जब भूले से भरमाए से भर्मरों को रस का पान मिला तब हम मस्तों को हृदय मिला मर मिटने का अरमान मिला।   पत्थर सी इन दो आंखो को जलधारा का उपहार मिला सूनी सी ठंडी सांसों को फिर उच्छवासो का भार मिला   युग युग की उस तन्मयता को कल्पना मिली संचार मिला तब हम पागल से झूम उठे जब रोम रोम को प्यार मिला

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