पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला घेर ले छाया अमा बन, आज कज्जल-अश्रुओं में रिमझिमा ले यह घिरा घन, और होंगे नयन सूखे, तिल बुझे औ' पलक रूखे, आर्द्र चितवन में यहाँ शत विद्युतों में दीप खेला और होंगे चरण हारे, अन्य हैं जो लौटते दे शूल को संकल्प सारे; दुखव्रती निर्माण-उन्मद यह अमरता नापते पद; बाँध देंगे अंक-संसृति से तिमिर में स्वर्ण बेला दूसरी होगी कहानी शून्य में जिसके मिटे स्वर, धूलि में...
गोधूली, अब दीप जगा ले! नीलम की निस्मीम पटी पर, तारों के बिखरे सित अक्षर, तम आता हे पाती में, प्रिय का आमन्त्र स्नेह-पगा ले! कुमकुम से सीमान्त सजीला, केशर का आलेपन पीला, किरणों की अंजन-रेखा फीके नयनों में आज लगा ले! इसमें भू के राग घुले हैं, मूक गगन के अश्रु घुले है, रज के रंगों में अपना तू झीना सुरभि-दुकूल रँगा ले! अब असीम में पंख रुक चले, अब सीमा में चरण थक चले, तू निश्वास भेज इनके हित दिन का अन्तिम हास मँगा ले! किरण-नाल पर घन के...
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो। श्रवण...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...