अज्ञात

इस लेखक की रचनाएँ

आज बिरज में होरी रे रसिया

आज बिरज में होरी रे रसिया॥  होरी रे रसिया, बरजोरी रे रसिया॥ आज. कौन के हाथ कनक पिचकारी, कौन के हाथ...

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खेलूँगी कभी न होली

खेलूँगी कभी न होली उससे जो नहीं...

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सब बुझे दीपक जला लूं

सब बुझे दीपक जला लूं घिर रहा तम...

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पत्रोत्कंठित जीवन का विष बुझा हुआ है

पत्रोत्कंठित जीवन का विष बुझा हुआ...

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हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...

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धूप सा तन दीप सी मैं

धूप सा तन दीप सी मैं!  उड़ रहा...

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