आज बिरज में होरी रे रसिया॥ होरी रे रसिया, बरजोरी रे रसिया॥ आज. कौन के हाथ कनक पिचकारी, कौन के हाथ...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
धूप सा तन दीप सी मैं! उड़ रहा...
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...