गीत

जैसे हम हैं वैसे ही रहें, लिये हाथ एक दूसरे का अतिशय सुख के सागर में बहें ...

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सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

जैसे हम हैं वैसे ही रहें, 

लिये हाथ एक दूसरे का 

अतिशय सुख के सागर में बहें।

मुदें पलक, केवल देखें उर में,-

सुनें सब कथा परिमल-सुर में, 

जो चाहें, कहें वे, कहें।

वहाँ एक दृष्टि से अशेष प्रणय

देख रहा है जग को निर्भय, 

दोनों उसकी दृढ़ लहरें सहें।


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