जब पानी सर से बहता है

अपना हम जिन्हें समझते हैं। जब वही मदांध उलझते हैं, फिर तो कहना पड़ जाता ही, जो बात नहीं यों कहता है ...

Aarsi prasad singh 600x350.jpg

आरसी प्रसाद सिंह

तब कौन मौन हो रहता है? 

जब पानी सर से बहता है। 

 

चुप रहना नहीं सुहाता है, 

कुछ कहना ही पड़ जाता है। 

व्यंग्यों के चुभते बाणों को 

कब तक कोई भी सहता है? 

जब पानी सर से बहता है। 

 

अपना हम जिन्हें समझते हैं। 

जब वही मदांध उलझते हैं, 

फिर तो कहना पड़ जाता ही, 

जो बात नहीं यों कहता है।

जब पानी सर से बहता है। 

 

दुख कौन हमारा बाँटेगा 

हर कोई उल्टे डाँटेगा। 

अनचाहा संग निभाने में 

किसका न मनोरथ ढहता है? 

जब पानी सर से बहता है।


DISCUSSION

blog comments powered by Disqus

सबसे लोकप्रिय

poet-image

खेलूँगी कभी न होली

खेलूँगी कभी न होली उससे जो नहीं...

poet-image

सब बुझे दीपक जला लूं

सब बुझे दीपक जला लूं घिर रहा तम...

poet-image

पत्रोत्कंठित जीवन का विष बुझा हुआ है

पत्रोत्कंठित जीवन का विष बुझा हुआ...

poet-image

हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...

poet-image

धूप सा तन दीप सी मैं

धूप सा तन दीप सी मैं!  उड़ रहा...

ad-image