प्रसाद

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ले चल वहाँ भुलावा देकर

ले चल वहाँ भुलावा देकर मेरे नाविक ! धीरे-धीरे ।                            जिस निर्जन में सागर लहरी,                         अम्बर के कानों में गहरी,                     निश्छल प्रेम-कथा कहती हो-                    तज कोलाहल की अवनी रे ।                  जहाँ साँझ-सी जीवन-छाया,               ढीली अपनी कोमल काया,            नील नयन से ढुलकाती हो-         ताराओं की पाँति घनी रे ।                              जिस गम्भीर...

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अरुण यह मधुमय देश हमारा

अरुण यह मधुमय देश हमारा। जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।। सरल तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरुशिखा मनोहर। छिटका जीवन हरियाली पर, मंगल कुंकुम सारा।। लघु सुरधनु से पंख पसारे, शीतल मलय समीर सहारे। उड़ते खग जिस ओर मुँह किए, समझ नीड़ निज प्यारा।। बरसाती आँखों के बादल, बनते जहाँ भरे करुणा जल। लहरें टकरातीं अनन्त की, पाकर जहाँ किनारा।। हेम कुम्भ ले उषा सवेरे, भरती ढुलकाती सुख मेरे। मंदिर ऊँघते रहते जब, जगकर रजनी भर तारा।।...

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बीती विभावरी जाग री

बीती विभावरी जाग री!   अम्बर पनघट में डुबो रही तारा-घट ऊषा नागरी!   खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा किसलय का अंचल डोल रहा लो यह लतिका भी भर ला‌ई- मधु मुकुल नवल रस गागरी   अधरों में राग अमंद पिए अलकों में मलयज बंद किए तू अब तक सो‌ई है आली आँखों में भरे विहाग री!

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रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

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