मेंहदी हसन

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उज्र् आने में भी है और बुलाते भी नहीं

उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं  बाइस-ए-तर्क-ए मुलाक़ात बताते भी नहीं मुंतज़िर हैं दमे रुख़सत के ये मर जाए तो जाएँ  फिर ये एहसान के हम छोड़ के जाते भी नहीं सर उठाओ तो सही, आँख मिलाओ तो सही  नश्शाए मैं भी नहीं, नींद के माते भी नहीं क्या कहा फिर तो कहो; हम नहीं सुनते तेरी  नहीं सुनते तो हम ऐसों को सुनाते भी नहीं ख़ूब परदा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं  साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं मुझसे लाग़िर तेरी आँखों में खटकते तो...

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शोला था जल-बुझा हूँ, हवायें मुझे न दो

शोला था जल-बुझा हूँ हवायें मुझे न दो  मैं कब का जा चुका हूँ सदायें मुझे न दो   जो ज़हर पी चुका हूँ तुम्हीं ने मुझे दिया  अब तुम तो ज़िन्दगी की दुआयें मुझे न दो    ऐसा कहीं न हो के पलटकर न आ सकूँ  हर बार दूर जा के सदायें मुझे न दो    कब मुझ को ऐतेराफ़-ए-मुहब्बत न था "फ़राज़" कब मैं ने ये कहा था सज़ायें मुझे न दो

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अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें

  अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें   ढूँढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती ये ख़ज़ाने तुझे मुम्किन[1] है ख़राबों[2] में मिलें   तू ख़ुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा दोनों इंसाँ हैं तो क्यों इतने हिजाबों[3] में मिलें   ग़म-ए-दुनिया[4] भी ग़म-ए-यार[5] में शामिल कर लो नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें   आज हम दार[6] पे खेंचे गये जिन बातों पर क्या...

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रंजिश ही सही

  रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मोहब्बत[1]का भरम रख तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ पहले से मरासिम[2] न सही, फिर भी कभी तो रस्मों-रहे दुनिया ही निभाने के लिए आ किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम तू मुझ से ख़फ़ा है, तो ज़माने के लिए आ इक उम्र से हूँ लज़्ज़त-ए-गिरिया[3] से भी महरूम ऐ राहत-ए-जाँ मुझको रुलाने के लिए आ अब तक दिल-ए-ख़ुशफ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें...

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