चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ, चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ, चाह नहीं, सम्राटों के शव पर, हे हरि, डाला जाऊँ चाह नहीं, देवों के सिर पर, चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ! मुझे तोड़ लेना वनमाली! उस पथ पर देना तुम फेंक, मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जावें वीर अनेक।
क्या कहा कि यह घर मेरा है? जिसके रवि उगें जेलों में, संध्या होवे वीरानों मे, उसके कानों में क्यों कहने आते हो? यह घर मेरा है? है नील चंदोवा तना कि झूमर झालर उसमें चमक रहे, क्यों घर की याद दिलाते हो, तब सारा रैन-बसेरा है? जब चाँद मुझे नहलाता है, सूरज रोशनी पिन्हाता है, क्यों दीपक लेकर कहते हो, यह तेरा दीपक लेकर कहते हो, यह तेरा है, यह मेरा है? ये आए बादल घूम उठे, ये हवा के झोंके झूम उठे, बिजली...
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो। श्रवण...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...