होली

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खेलूँगी कभी न होली

खेलूँगी कभी न होली उससे जो नहीं हमजोली । यह आँख नहीं कुछ बोली, यह हुई श्याम की तोली, ऐसी भी रही ठठोली, गाढ़े रेशम की चोली- अपने से अपनी धो लो, अपना घूँघट तुम खोलो, अपनी ही बातें बोलो, मैं बसी पराई टोली । जिनसे होगा कुछ नाता, उनसे रह लेगा माथा, उनसे हैं जोडूँ-जाता, मैं मोल दूसरे मोली

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केशर की, कलि की पिचकारी

केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात की गात सँवारी । राग-पराग-कपोल किए हैं, लाल-गुलाल अमोल लिए हैं तरू-तरू के तन खोल दिए हैं, आरती जोत-उदोत उतारी- गन्ध-पवन की धूप धवारी । गाए खग-कुल-कण्ठ गीत शत, संग मृदंग तरंग-तीर-हत भजन-मनोरंजन-रत अविरत, राग-राग को फलित किया री- विकल-अंग कल गगन विहारी ।

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केशर की, कलि की पिचकारी

केशर की, कलि की पिचकारी पात-पात की गात सँवारी । राग-पराग-कपोल किए हैं, लाल-गुलाल अमोल लिए हैं तरू-तरू के तन खोल दिए हैं, आरती जोत-उदोत उतारी- गन्ध-पवन की धूप धवारी । गाए खग-कुल-कण्ठ गीत शत, संग मृदंग तरंग-तीर-हत भजन-मनोरंजन-रत अविरत, राग-राग को फलित किया री- विकल-अंग कल गगन विहारी ।

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आज बिरज में होरी रे रसिया

आज बिरज में होरी रे रसिया॥  होरी रे रसिया, बरजोरी रे रसिया॥ आज. कौन के हाथ कनक पिचकारी, कौन के हाथ कमोरी रे रसिया॥ आज. कृष्ण के हाथ कनक पिचकारी, राधा के हाथ कमोरी रे रसिया॥ आज. अपने-अपने घर से निकसीं, कोई श्यामल, कोई गोरी रे रसिया॥ आज. उड़त गुलाल लाल भये बादर, केशर रंग में घोरी रे रसिया॥ आज. बाजत ताल मृदंग झांझ ढप, और नगारे की जोड़ी रे रसिया॥ आज. कै मन लाल गुलाल मँगाई, कै मन केशर घोरी रे रसिया॥ आज. सौ मन लाल गुलाल मगाई,...

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खेलूँगी कभी न होली

खेलूँगी कभी न होली उससे जो नहीं हमजोली । यह आँख नहीं कुछ बोली, यह हुई श्याम की तोली, ऐसी भी रही ठठोली, गाढ़े रेशम की चोली- अपने से अपनी धो लो, अपना घूँघट तुम खोलो, अपनी ही बातें बोलो, मैं बसी पराई टोली । जिनसे होगा कुछ नाता, उनसे रह लेगा माथा, उनसे हैं जोडूँ-जाता, मैं मोल दूसरे मोली

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