क्या गाती हो? क्यों रह-रह जाती हो? कोकिल बोलो तो! क्या लाती हो? सन्देशा किसका है? कोकिल बोलो तो! ऊँची काली दीवारों के घेरे में, डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में, जीने को देते नहीं पेट भर खाना, मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना! जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है, शासन है, या तम का प्रभाव गहरा है? हिमकर निराश कर चला रात भी काली, इस समय कालिमामयी जगी क्यूँ आली ? क्यों हूक पड़ी? वेदना-बोझ वाली-सी; कोकिल बोलो तो! "क्या लुटा? मृदुल वैभव...
रात ऊँघ रही है... किसी ने इन्सान की छाती में सेंध लगाई है हर चोरी से भयानक यह सपनों की चोरी है। चोरों के निशान — हर देश के हर शहर की हर सड़क पर बैठे हैं पर कोई आँख देखती नहीं, न चौंकती है। सिर्फ़ एक कुत्ते की तरह एक ज़ंजीर से बँधी किसी वक़्त किसी की कोई नज़्म भौंकती है।
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...