अमीरजादों पे नहीं मिला, शख्स-ए-आम पे तो मिलेगा गरीब हैं शाह जिस सुकून से, वो आवाम पे तो मिलेगा ऐ दिल ले आ कहीं से, मुठ्ठी भर प्यार मुझे माना नहीं धूप सा सस्ता, दिल के दाम पे तो मिलेगा दिल देकर भी मिला ना, जो कहीं चैन हमें गम-ए-मयखाने में, आंसुओं के दाम पे तो मिलेगा ना नींद खोकर पाया, ना अश्क बहाकर अगर मिला वफ़ा ना सही"सपना", उसकी बेवफाई के नाम पे तो मिलेगा
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
धूप सा तन दीप सी मैं! उड़ रहा...
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...