कौन सिखाता है चिड़ियों को चीं-चीं, चीं-चीं करना? कौन सिखाता फुदक-फुदक कर उनको चलना फिरना? कौन सिखाता फुर्र से उड़ना दाने चुग-चुग खाना? कौन सिखाता तिनके ला-ला कर घोंसले बनाना? कौन सिखाता है बच्चों का लालन-पालन उनको? माँ का प्यार, दुलार, चौकसी कौन सिखाता उनको? कुदरत का यह खेल, वही हम सबको, सब कुछ देती। किन्तु नहीं बदले में हमसे वह कुछ भी है लेती। हम सब उसके अंश कि जैसे तरू-पशु-पक्षी सारे। हम सब उसके वंशज...
पीपल की ऊँची डाली पर बैठी चिड़िया गाती है । तुम्हें ज्ञात अपनी बोली में क्या संदेश सुनाती है ? चिड़िया बैठी प्रेम-प्रीति की रीति हमें सिखलाती है । वह जग के बंदी मानव को मुक्ति-मंत्र बतलाती है । वन में जितने पंछी हैं- खंजन, कपोत, चातक, कोकिल, काक, हंस, शुक, आदि वास करते सब आपस में हिलमिल । सब मिल-जुलकर रहते हैं वे, सब मिल-जुलकर खाते हैं । आसमान ही उनका घर है, जहाँ चाहते, जाते हैं । रहते जहाँ, वहीं वे अपनी दुनिया एक बनाते हैं । दिनभर...
ये भगवान के डाकिये हैं, जो एक महादेश से दूसरे महादेश को जाते हैं। हम तो समझ नहीं पाते हैं, मगर उनकी लायी चिट्ठियाँ पेड़, पौधे, पानी और पहाड़ बाँचते हैं। हम तो केवल यह आँकते हैं कि एक देश की धरती दूसरे देश को सुगन्ध भेजती है। और वह सौरभ हवा में तैरती हुए पक्षियों की पाँखों पर तिरता है। और एक देश का भाप दूसरे देश का पानी बनकर गिरता है।
खेलूँगी कभी न होली उससे जो नहीं...
सब बुझे दीपक जला लूं घिर रहा तम...
पत्रोत्कंठित जीवन का विष बुझा हुआ...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
धूप सा तन दीप सी मैं! उड़ रहा...