परंपरा को अंधी लाठी से मत पीटो उसमें बहुत कुछ है जो जीवित है जीवन दायक है जैसे भी हो ध्वंस से बचा रखने लायक है पानी का छिछला होकर समतल में दौड़ना यह क्रांति का नाम है लेकिन घाट बांध कर पानी को गहरा बनाना यह परम्परा का नाम है परम्परा और क्रांति में संघर्ष चलने दो आग लगी है, तो सूखी डालों को जलने दो मगर जो डालें आज भी हरी हैं उन पर तो तरस खाओ मेरी एक बात तुम मान लो लोगों...
खेलूँगी कभी न होली उससे जो नहीं...
सब बुझे दीपक जला लूं घिर रहा तम...
पत्रोत्कंठित जीवन का विष बुझा हुआ...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
धूप सा तन दीप सी मैं! उड़ रहा...