वीरता

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वीर तुम बढ़े चलो

वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!   हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं  वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!   सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो  तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं  वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!   प्रात हो कि रात हो संग हो न साथ हो सूर्य से बढ़े चलो चन्द्र से बढ़े चलो वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!   एक ध्वज लिये हुए एक प्रण किये हुए मातृ भूमि...

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वीरों का कैसा हो वसंत

आ रही हिमालय से पुकार है उदधि गरजता बार बार प्राची पश्चिम भू नभ अपार; सब पूछ रहें हैं दिग-दिगन्त वीरों का हो कैसा वसन्त   फूली सरसों ने दिया रंग मधु लेकर आ पहुंचा अनंग वधु वसुधा पुलकित अंग अंग; है वीर देश में किन्तु कंत वीरों का हो कैसा वसन्त   भर रही कोकिला इधर तान मारू बाजे पर उधर गान है रंग और रण का विधान; मिलने को आए आदि अंत वीरों का हो कैसा वसन्त   गलबाहें हों या कृपाण चलचितवन हो या धनुषबाण...

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शक्ति और क्षमा

क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल सबका लिया सहारा पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे कहो, कहाँ, कब हारा?   क्षमाशील हो रिपु-समक्ष तुम हुये विनत जितना ही दुष्ट कौरवों ने तुमको कायर समझा उतना ही।   अत्याचार सहन करने का कुफल यही होता है पौरुष का आतंक मनुज कोमल होकर खोता है।   क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो उसको क्या जो दंतहीन विषरहित, विनीत, सरल हो।   तीन दिवस तक पंथ मांगते रघुपति सिन्धु किनारे,...

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रश्मिरथी

    - - - - प्रथम-सर्ग - - - -   'जय हो' जग में जले जहाँ भी, नमन पुनीत अनल को, जिस नर में भी बसे, हमारा नमन तेज को, बल को। किसी वृन्त पर खिले विपिन में, पर, नमस्य है फूल, सुधी खोजते नहीं, गुणों का आदि, शक्ति का मूल।   ऊँच-नीच का भेद न माने, वही श्रेष्ठ ज्ञानी है, दया-धर्म जिसमें हो, सबसे वही पूज्य प्राणी है। क्षत्रिय वही, भरी हो जिसमें निर्भयता की आग, सबसे श्रेष्ठ वही ब्राह्मण है, हो जिसमें तप-त्याग।   तेजस्वी सम्मान...

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