नानी-नानी! कहो कहानी, समय नहीं है, बोली नानी। फिर मैंने पापा को परखा, बोले-समय नहीं है बरखा। भैया पर भी समय नहीं था, उसका मन भी और कहीं था। मम्मी जी भी लेटी-लेटी, बोलीं-समय नहीं है बेटी। मम्मी, पापा, नानी, भैया, दिन भर करते ता-ता-थैया। मेरी समझ नहीं आता है, इनका समय कहाँ जाता है!
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
धूप सा तन दीप सी मैं! उड़ रहा...
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...