सांध्यगीत

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किसी का दीप निष्ठुर हूँ

शलभ मैं शापमय वर हूँ! किसी का दीप निष्ठुर हूँ! ताज है जलती शिखा; चिनगारियाँ शृंगारमाला; ज्वाल अक्षय कोष सी अंगार मेरी रंगशाला ; नाश में जीवित किसी की साध सुन्दर हूँ! नयन में रह किन्तु जलती पुतलियाँ आगार होंगी; प्राण में कैसे बसाऊँ कठिन अग्नि समाधि होगी; फिर कहाँ पालूँ तुझे मैं मृत्यु-मन्दिर हूँ! हो रहे झर कर दृगों से अग्नि-कण भी क्षार शीतल; पिघलते उर से निकल निश्वास बनते धूम श्यामल; एक ज्वाला के बिना मैं राख का घर हूँ! कौन...

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