स्वतंत्रता

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हिमाद्रि तुंग शृंग से

हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती  स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती  'अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़- प्रतिज्ञ सोच लो,  प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो!'    असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी  सपूत मातृभूमि के- रुको न शूर साहसी!  अराति सैन्य सिंधु में, सुवाड़वाग्नि से जलो,  प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो, बढ़े चलो!

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वंदना

वंदिनी तव वंदना में  कौन सा मैं गीत गाऊँ?   स्वर उठे मेरा गगन पर,  बने गुंजित ध्वनित मन पर,  कोटि कण्ठों में तुम्हारी  वेदना कैसे बजाऊँ?   फिर, न कसकें क्रूर कड़ियाँ,  बनें शीतल जलन-घड़ियाँ,  प्राण का चन्दन तुम्हारे  किस चरण तल पर लगाऊँ?   धूलि लुiण्ठत हो न अलकें,  खिलें पा नवज्योति पलकें,  दुर्दिनों में भाग्य की  मधु चंद्रिका कैसे खिलाऊँ?   तुम उठो माँ! पा नवल बल,  दीप्त हो फिर भाल उज्ज्वल!  इस निबिड़ नीरव निशा में  किस उषा...

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झांसी की रानी

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,  बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,  गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,  दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।    चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,  बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,  खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।    कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,  लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,  नाना के सँग पढ़ती थी...

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केशर की, कलि की पिचकारी

केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...

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हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...

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रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...

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अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी

हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...

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भारत महिमा

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...

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