कविताएँ

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ताजमहल

ताज तेरे लिये इक मज़हर-ए-उल्फ़त[1]ही सही  तुझको इस वादी-ए-रंगीं[2]से अक़ीदत[3] ही सही   मेरी महबूब[4] कहीं और मिला कर मुझ से!    बज़्म-ए-शाही[5] में ग़रीबों का गुज़र क्या मानी  सब्त[6] जिस राह में हों सतवत-ए-शाही[7] के निशाँ  उस पे उल्फ़त भरी रूहों का सफ़र क्या मानी    मेरी महबूब! पस-ए-पर्दा-ए-तशहीर-ए-वफ़ा[8]    तू ने सतवत[9] के निशानों को तो देखा होता  मुर्दा शाहों के मक़ाबिर[10] से बहलने वाली  अपने तारीक[11]...

Subhadra kumari chauhan 275x153.jpg

झांसी की रानी

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,  बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,  गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,  दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।    चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,  बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,  खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।    कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,  लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,  नाना के सँग पढ़ती थी...

Saahir ludhianavi 275x153.jpg

जिसे तू कुबूल कर ले वह अदा कहाँ से लाऊँ

  जिसे तू कुबूल कर ले वह अदा कहाँ से लाऊँ तेरे दिल को जो लुभाए वह सदा कहाँ से लाऊँ   मैं वो फूल हूँ कि जिसको गया हर कोई मसल के मेरी उम्र बह गई है मेरे आँसुओं में ढल के जो बहार बन के बरसे वह घटा कहाँ से लाऊँ   तुझे और की तमन्ना, मुझे तेरी आरजू है तेरे दिल में ग़म ही ग़म है मेरे दिल में तू ही तू है जो दिलों को चैन दे दे वह दवा कहाँ से लाऊँ   मेरी बेबसी है ज़ाहिर मेरी आहे बेअसर से कभी मौत भी जो मांगी तो न पाई उसके...

Ramanath awasthi 275x153.jpg

एक समान

डाल के रंग-बिरंगे फूल   राह के दुबले-पतले शूल   मुझे लगते सब एक समान!     न मैंने दुख से माँगी दया   न सुख ही मुझसे नाखुश गया   पुरानी दुनिया के भी बीच-   रहा मैं सदा नया का नया     धरा के ऊँचे-नीचे बोल   व्योम के चाँद-सूर्य अनमोल   मुझे लगते सब एक समान!     गगन के सजे-बजे बादल   नयन में सोया गंगाजल   चाँद से क्या कम प्यारा है   चाँद के माथे का काजल     ...

Makhanlal chaturvedi 275x153.jpg

अंजलि के फूल गिरे जाते हैं

अंजलि के फूल गिरे जाते हैं आये आवेश फिरे जाते हैं।   चरण-ध्वनि पास-दूर कहीं नहीं साधें आराधनीय रही नहीं उठने,उठ पड़ने की बात रही साँसों से गीत बे-अनुपात रही   बागों में पंखनियाँ झूल रहीं कुछ अपना, कुछ सपना भूल रहीं फूल-फूल धूल लिये मुँह बाँधे किसको अनुहार रही चुप साधे   दौड़ के विहार उठो अमित रंग तू ही `श्रीरंग' कि मत कर विलम्ब बँधी-सी पलकें मुँह खोल उठीं कितना रोका कि मौन बोल उठीं आहों का रथ माना...

Dushyant kumar roi 2 275x153.jpg

कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये

कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिये   यहाँ दरख़्तों के साये में धूप लगती है चलो यहाँ से चले और उम्र भर के लिये   न हो क़मीज़ तो घुटनों से पेट ढक लेंगे ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिये   ख़ुदा नहीं न सही आदमी का ख़्वाब सही कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिये   वो मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता मैं बेक़रार हूँ आवाज़ में असर के लिये   जियें तो अपने बग़ीचे में...

Dharmavir bharti 275x153.jpg

उतरी शाम

झुरमुट में दुपहरिया कुम्हलाई खोतों पर अँधियारी छाई पश्चिम की सुनहरी धुंधराई टीलों पर, तालों पर इक्के दुक्के अपने घर जाने वालों पर धीरे-धीरे उतरी शाम !   आँचल से छू तुलसी की थाली दीदी ने घर की ढिबरी बाली जमुहाई ले लेकर उजियाली जा बैठी ताखों में धीरे-धीरे उतरी शाम !   इस अधकच्चे से घर के आंगन में जाने क्यों इतना आश्वासन पाता है यह मेरा टूटा मन लगता है इन पिछले वर्षों में सच्चे झूठे संघर्षों में ...

Sumitranandan pant 275x153.jpg

जग-जीवन में जो चिर महान

जग-जीवन में जो चिर महान, सौंदर्य-पूर्ण औ सत्य-प्राण, मैं उसका प्रेमी बनूँ, नाथ! जिसमें मानव-हित हो समान! जिससे जीवन में मिले शक्ति, छूटे भय, संशय, अंध-भक्ति; मैं वह प्रकाश बन सकूँ, नाथ! मिट जावें जिसमें अखिल व्यक्ति! दिशि-दिशि में प्रेम-प्रभा प्रसार, हर भेद-भाव का अंधकार, मैं खोल सकूँ चिर मुँदे, नाथ! मानव के उर के स्वर्ग-द्वार! पाकर, प्रभु! तुमसे अमर दान करने मानव का परित्राण, ला सकूँ विश्व में एक बार फिर...

Maithilisharan gupt roi 3 275x153.jpg

माँ कह एक कहानी

"माँ कह एक कहानी।" बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी?" "कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटी कह माँ कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी? माँ कह एक कहानी।"   "तू है हठी, मानधन मेरे, सुन उपवन में बड़े सवेरे, तात भ्रमण करते थे तेरे, जहाँ सुरभि मनमानी।" "जहाँ सुरभि मनमानी! हाँ माँ यही कहानी।"   वर्ण वर्ण के फूल खिले थे, झलमल कर हिमबिंदु झिले थे, हलके झोंके हिले मिले थे, लहराता था पानी।" "लहराता था पानी, हाँ-हाँ...

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भिक्षुक

वह आता-- दो टूक कलेजे के करता पछताता  पथ पर आता।   पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक, चल रहा लकुटिया टेक, मुट्ठी भर दाने को-- भूख मिटाने को मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता-- दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।   साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाये, बायें से वे मलते हुए पेट को चलते, और दाहिना दया दृष्टि-पाने की ओर बढ़ाये। भूख से सूख ओठ जब जाते दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते?-- घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते। चाट...

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खेलूँगी कभी न होली

खेलूँगी कभी न होली उससे जो नहीं...

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सब बुझे दीपक जला लूं

सब बुझे दीपक जला लूं घिर रहा तम...

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पत्रोत्कंठित जीवन का विष बुझा हुआ है

पत्रोत्कंठित जीवन का विष बुझा हुआ...

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हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...

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धूप सा तन दीप सी मैं

धूप सा तन दीप सी मैं!  उड़ रहा...

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