हंगामा है क्यूँ बरपा

उस मय से नहीं मतलब, दिल जिस से है बेगाना मक़सूद है उस मय से, दिल ही में जो खिंचती है ...


 

हंगामा है क्यूँ बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है

डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है

 

ना-तजुर्बाकारी से, वाइज़[1] की ये बातें हैं

इस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी पी है

 

उस मय से नहीं मतलब, दिल जिस से है बेगाना

मक़सूद[2] है उस मय से, दिल ही में जो खिंचती है

 

वां[3] दिल में कि दो सदमे,यां[4] जी में कि सब सह लो

उन का भी अजब दिल है, मेरा भी अजब जी है

 

हर ज़र्रा चमकता है, अनवर-ए-इलाही[5] से

हर साँस ये कहती है, कि हम हैं तो ख़ुदा भी है

 

सूरज में लगे धब्बा, फ़ितरत[6] के करिश्मे हैं

बुत हम को कहें काफ़िर, अल्लाह की मर्ज़ी है

 

शब्दार्थ:

1 धर्मोपदेशक

2 ↑ मनोरथ

3 वहाँ

4 यहाँ

5 दैवी प्रकाश

6 प्रकृति

 

DISCUSSION

blog comments powered by Disqus

सबसे लोकप्रिय

poet-image

हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो। श्रवण...

poet-image

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...

poet-image

अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी

हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...

poet-image

भारत महिमा

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...

poet-image

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो, ...

ad-image