गांधी

Sohanlaldwivedi 275x153.jpg

युगावतार गांधी

चल पड़े जिधर दो डग मग में  चल पड़े कोटि पग उसी ओर, पड़ गई जिधर भी एक दृष्टि  गड़ गये कोटि दृग उसी ओर,   जिसके शिर पर निज धरा हाथ  उसके शिर-रक्षक कोटि हाथ,  जिस पर निज मस्तक झुका दिया  झुक गये उसी पर कोटि माथ;  हे कोटिचरण, हे कोटिबाहु!  हे कोटिरूप, हे कोटिनाम!  तुम एकमूर्ति, प्रतिमूर्ति कोटि  हे कोटिमूर्ति, तुमको प्रणाम!   युग बढ़ा तुम्हारी हँसी देख  युग हटा तुम्हारी भृकुटि देख,  तुम अचल मेखला बन भू की  खींचते काल पर अमिट रेख;  तुम...

सबसे लोकप्रिय

poet-image

हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो। श्रवण...

poet-image

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...

poet-image

अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी

हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...

poet-image

भारत महिमा

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...

poet-image

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो, ...

ad-image