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झाँसी वाली रानी

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झांसी की रानी

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,  बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,  गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,  दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।    चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,  बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,  खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।    कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,  लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,  नाना के सँग पढ़ती थी...

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