तड़प

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यह कैसी चुप है

यह कैसी चुप है कि जिसमें पैरों की आहट शामिल है कोई चुपके से आया है -- चुप से टूटा हुआ -- चुप का टुकड़ा -- किरण से टूटा हुआ किरण का कोई टुकड़ा यह एक कोई "'वह'' है जो बहुत बार बुलाने पर भी नही आया था | और अब मैं अकेली नहीं मैं आप अपने संग खड़ी हूँ शीशे की सुराही में नज़रों की शराब भरी है -- और हम दोनों जाम पी रहे हैं वह टोस्ट दे रहा उन लफ्जों के जो सिर्फ़ छाती में उगते हैं | यह अर्थों का जश्न है --- ...

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मैं तुझे फिर मिलूँगी

मैं तुझे फ़िर मिलूंगी कहाँ किस तरह पता नहीं शायद तेरी तख्यिल की चिंगारी बन तेरे केनवास पर उतरुंगी  या तेरे केनवास पर एक रहस्यमयी लकीर बन खामोश तुझे देखती रहूंगी या फ़िर सूरज की लौ बन कर  तेरे रंगों में घुलती रहूंगी या रंगों की बाहों में बैठ कर तेरे केनवास से लिपट जाउंगी पता नहीं कहाँ किस तरह पर तुझे जरुर मिलूंगी   या फ़िर एक चश्मा बनी जैसे झरने से पानी उड़ता है मैं पानी की बूंदें तेरे बदन पर मलूंगी ...

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