लोकतंत्र

बहुत हो चुका अब हमें इन्साफ मिलना चाहिए

बहुत हो चुका अब हमें इन्साफ मिलना चाहिए खदेड़कर धुंध स्याह, नभ साफ़ मिलना चाहिए भ्रष्ट तंत्र भ्रष्टाचार, भ्रष्ट ही सबके विचार हर एक जन अब इसके, खिलाफ मिलना चाहिए भड़काए नफरत के शोले, सरजमीं पर तुमने बहुत जर्रा -जर्रा हमें इसका अब, आफताब मिलना चाहिए झूठे वादे झूठे इरादे यहाँ, अब नहीं चल पायेंगे बच्चे बच्चे का पूरा, हर ख्वाब मिलना चाहिए उखाड़ फैंको इस तंत्र को स्वतंत्र हो तुम अगर लोकतंत्र का हमें अब, पूरा स्वाद मिलना चाहिए

सबसे लोकप्रिय

poet-image

हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो। श्रवण...

poet-image

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...

poet-image

अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी

हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...

poet-image

भारत महिमा

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...

poet-image

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो, ...

ad-image