किताबें

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उर्वशी

पात्र परिचय पुरुष पुरुरवा: वेदकालीन, प्रतिष्ठानपुर के विक्रमी ऐल राजा, नायक महर्षि च्यवन: प्रसिद्द; भृगुवंशी, वेदकालीन महर्षि सूत्रधार: नाटक का शास्त्रीय आयोजक, अनिवार्य पात्र कंचुकी: सभासद: प्रतिहारी: प्रारब्ध आदि आयु: पुरुरवा-उर्वशी का पुत्र महामात्य: पुरुरवा के मुख्य सचिव विश्व्मना: राज ज्योतिषी नारी नटी: शास्त्रीय पात्री, सूत्रधार की पत्नी सहजन्या, रम्भा, मेनका, चित्रलेखा: अप्सराएं औशीनरी: पुरुरवा पत्नी, प्रतिष्ठानपुर की महारानी निपुणिका, मदनिका:...

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रश्मिरथी

    - - - - प्रथम-सर्ग - - - -   'जय हो' जग में जले जहाँ भी, नमन पुनीत अनल को, जिस नर में भी बसे, हमारा नमन तेज को, बल को। किसी वृन्त पर खिले विपिन में, पर, नमस्य है फूल, सुधी खोजते नहीं, गुणों का आदि, शक्ति का मूल।   ऊँच-नीच का भेद न माने, वही श्रेष्ठ ज्ञानी है, दया-धर्म जिसमें हो, सबसे वही पूज्य प्राणी है। क्षत्रिय वही, भरी हो जिसमें निर्भयता की आग, सबसे श्रेष्ठ वही ब्राह्मण है, हो जिसमें तप-त्याग।   तेजस्वी सम्मान...

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मधुशाला

- - भाग १ - - मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला, प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला, पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा, सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।१। प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला, एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला, जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका, आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।२। प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला, अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,...

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खेलूँगी कभी न होली

खेलूँगी कभी न होली उससे जो नहीं...

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सब बुझे दीपक जला लूं

सब बुझे दीपक जला लूं घिर रहा तम...

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पत्रोत्कंठित जीवन का विष बुझा हुआ है

पत्रोत्कंठित जीवन का विष बुझा हुआ...

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हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...

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धूप सा तन दीप सी मैं

धूप सा तन दीप सी मैं!  उड़ रहा...

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