तमाम उम्र मैं इक अजनबी के घर में रहा

वो और ही थे जिन्हें थी ख़बर सितारों की, मेरा ये देश तो रोटी की ही ख़बर में रहा ...

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गोपालदास "नीरज"

तमाम उम्र मैं इक अजनबी के घर में रहा । 
सफ़र न करते हुए भी किसी सफ़र में रहा ।

वो जिस्म ही था जो भटका किया ज़माने में, 
हृदय तो मेरा हमेशा तेरी डगर में रहा । 

तू ढूँढ़ता था जिसे जा के बृज के गोकुल में, 
वो श्याम तो किसी मीरा की चश्मे-तर में रहा । 

वो और ही थे जिन्हें थी ख़बर सितारों की, 
मेरा ये देश तो रोटी की ही ख़बर में रहा । 

हज़ारों रत्न थे उस जौहरी की झोली में, 
उसे कुछ भी न मिला जो अगर-मगर में रहा ।

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