उक्ति

कुछ न हुआ, न हो मुझे विश्व का सुख, श्री, यदि केवल पास तुम रहो ...

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सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

कुछ न हुआ, न हो

मुझे विश्व का सुख, श्री, यदि केवल

पास तुम रहो!

मेरे नभ के बादल यदि न कटे-

चन्द्र रह गया ढका,

तिमिर रात को तिरकर यदि न अटे

लेश गगन-भास का,

रहेंगे अधर हँसते, पथ पर, तुम

हाथ यदि गहो।

बहु-रस साहित्य विपुल यदि न पढ़ा--

मन्द सबों ने कहा,

मेरा काव्यानुमान यदि न बढ़ा--

ज्ञान, जहाँ का रहा,

रहे, समझ है मुझमें पूरी, तुम

कथा यदि कहो।

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