बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ

बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ! नींद थी मेरी अचल निस्पन्द कण कण में, प्रथम जागृति थी जगत के प्रथम स्पन्दन में ...

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महादेवी वर्मा

बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ!

नींद थी मेरी अचल निस्पन्द कण कण में,

प्रथम जागृति थी जगत के प्रथम स्पन्दन में,

प्रलय में मेरा पता पदचिन्‍ह जीवन में,

शाप हूँ जो बन गया वरदान बंधन में

कूल भी हूँ कूलहीन प्रवाहिनी भी हूँ!

बीन भी हूँ मैं...


नयन में जिसके जलद वह तृषित चातक हूँ,

शलभ जिसके प्राण में वह निठुर दीपक हूँ,

फूल को उर में छिपाए विकल बुलबुल हूँ,

एक होकर दूर तन से छाँह वह चल हूँ,

दूर तुमसे हूँ अखंड सुहागिनी भी हूँ!

बीन भी हूँ मैं...


आग हूँ जिससे ढुलकते बिंदु हिमजल के,

शून्य हूँ जिसके बिछे हैं पाँवड़े पलके,

पुलक हूँ जो पला है कठिन प्रस्तर में,

हूँ वही प्रतिबिम्ब जो आधार के उर में,

नील घन भी हूँ सुनहली दामिनी भी हूँ!

बीन भी हूँ मैं...


नाश भी हूँ मैं अनंत विकास का क्रम भी

त्याग का दिन भी चरम आसिक्त का तम भी,

तार भी आघात भी झंकार की गति भी,

पात्र भी, मधु भी, मधुप भी, मधुर विस्मृति भी,

अधर भी हूँ और स्मित  की चांदनी भी हूँ

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