देशभक्ति

Img 6522 275x153.jpg

पुष्प की अभिलाषा

चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ, चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ, चाह नहीं, सम्राटों के शव पर, हे हरि, डाला जाऊँ चाह नहीं, देवों के सिर पर, चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ! मुझे तोड़ लेना वनमाली! उस पथ पर देना तुम फेंक, मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जावें वीर अनेक।

Makhanlal chaturvedi 275x153.jpg

अमर राष्ट्र

छोड़ चले, ले तेरी कुटिया, यह लुटिया-डोरी ले अपनी, फिर वह पापड़ नहीं बेलने; फिर वह माल पडे न जपनी। यह जागृति तेरी तू ले-ले, मुझको मेरा दे-दे सपना, तेरे शीतल सिंहासन से सुखकर सौ युग ज्वाला तपना। सूली का पथ ही सीखा हूँ, सुविधा सदा बचाता आया, मैं बलि-पथ का अंगारा हूँ, जीवन-ज्वाल जलाता आया। एक फूँक, मेरा अभिमत है, फूँक चलूँ जिससे नभ जल थल, मैं तो हूँ बलि-धारा-पन्थी, फेंक चुका कब का गंगाजल। इस चढ़ाव पर चढ़ न सकोगे, इस उतार से जा...

2011 05 15 at 08 56 13 275x153.jpg

हिमाद्रि तुंग शृंग से

हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती  स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती  'अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़- प्रतिज्ञ सोच लो,  प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो!'    असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी  सपूत मातृभूमि के- रुको न शूर साहसी!  अराति सैन्य सिंधु में, सुवाड़वाग्नि से जलो,  प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो, बढ़े चलो!

Kedarnath mishr prabhat 275x153.jpg

हिमालय

अरे हिमालय! आज गरज तू बनकर विद्रोही विकराल! लाल लहू के ललित तिलक से शोभित करके अपना भाल। विश्व-विशाल-वीर दिग्विजयी! अभिमानी अखंड गिरिराज! साज, साज हां आज गरजकर क्रांति-महोत्सव के शुभ-साज शंखनाद कर, सिंह-नाद कर कर हुंकार-नाद भयमान! पड़े कब्र के भीतर मुर्दे दौड़ पड़ें सुनकर आह्वान।

Makhanlal chaturvedi 275x153.jpg

कैदी और कोकिला

क्या गाती हो? क्यों रह-रह जाती हो? कोकिल बोलो तो! क्या लाती हो? सन्देशा किसका है? कोकिल बोलो तो! ऊँची काली दीवारों के घेरे में, डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में, जीने को देते नहीं पेट भर खाना, मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना! जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है, शासन है, या तम का प्रभाव गहरा है? हिमकर निराश कर चला रात भी काली, इस समय कालिमामयी जगी क्यूँ आली ? क्यों हूक पड़ी? वेदना-बोझ वाली-सी; कोकिल बोलो तो! "क्या लुटा? मृदुल वैभव...

Sohanlaldwivedi 275x153.jpg

वंदना

वंदिनी तव वंदना में  कौन सा मैं गीत गाऊँ?   स्वर उठे मेरा गगन पर,  बने गुंजित ध्वनित मन पर,  कोटि कण्ठों में तुम्हारी  वेदना कैसे बजाऊँ?   फिर, न कसकें क्रूर कड़ियाँ,  बनें शीतल जलन-घड़ियाँ,  प्राण का चन्दन तुम्हारे  किस चरण तल पर लगाऊँ?   धूलि लुiण्ठत हो न अलकें,  खिलें पा नवज्योति पलकें,  दुर्दिनों में भाग्य की  मधु चंद्रिका कैसे खिलाऊँ?   तुम उठो माँ! पा नवल बल,  दीप्त हो फिर भाल उज्ज्वल!  इस निबिड़ नीरव निशा में  किस उषा...

Sohanlaldwivedi 275x153.jpg

हिमालय

युग युग से है अपने पथ पर  देखो कैसा खड़ा हिमालय!  डिगता कभी न अपने प्रण से  रहता प्रण पर अड़ा हिमालय!   जो जो भी बाधायें आईं  उन सब से ही लड़ा हिमालय,  इसीलिए तो दुनिया भर में  हुआ सभी से बड़ा हिमालय!   अगर न करता काम कभी कुछ  रहता हरदम पड़ा हिमालय  तो भारत के शीश चमकता  नहीं मुकुट-सा जड़ा हिमालय!   खड़ा हिमालय बता रहा है  डरो न आँधी पानी में,  खड़े रहो अपने पथ पर  सब कठिनाई तूफानी में!   डिगो न अपने प्रण से तो --  सब कुछ...

Sohanlaldwivedi 275x153.jpg

युगावतार गांधी

चल पड़े जिधर दो डग मग में  चल पड़े कोटि पग उसी ओर, पड़ गई जिधर भी एक दृष्टि  गड़ गये कोटि दृग उसी ओर,   जिसके शिर पर निज धरा हाथ  उसके शिर-रक्षक कोटि हाथ,  जिस पर निज मस्तक झुका दिया  झुक गये उसी पर कोटि माथ;  हे कोटिचरण, हे कोटिबाहु!  हे कोटिरूप, हे कोटिनाम!  तुम एकमूर्ति, प्रतिमूर्ति कोटि  हे कोटिमूर्ति, तुमको प्रणाम!   युग बढ़ा तुम्हारी हँसी देख  युग हटा तुम्हारी भृकुटि देख,  तुम अचल मेखला बन भू की  खींचते काल पर अमिट रेख;  तुम...

Gopalsinghnepali 275x153.jpg

नवीन कल्पना करो

निज राष्ट्र के शरीर के सिंगार के लिए तुम कल्पना करो, नवीन कल्पना करो, तुम कल्पना करो।   अब देश है स्वतंत्र, मेदिनी स्वतंत्र है  मधुमास है स्वतंत्र, चाँदनी स्वतंत्र है  हर दीप है स्वतंत्र, रोशनी स्वतंत्र है  अब शक्ति की ज्वलंत दामिनी स्वतंत्र है  लेकर अनंत शक्तियाँ सद्य समृद्धि की- तुम कामना करो, किशोर कामना करो, तुम कल्पना करो। तन की स्वतंत्रता चरित्र का निखार है  मन की स्वतंत्रता विचार की बहार है  घर की स्वतंत्रता समाज का सिंगार...

Aarsi prasad singh 275x153.jpg

राष्ट्रगीत

सारे जग को पथ दिखलाने- वाला जो ध्रुव तारा है। भारत-भू ने जन्म दिया है, यह सौभाग्य हमारा है।। धूप खुली है, खुली हवा है। सौ रोगों की एक दवा है। चंदन की खुशबू से भीगा- भीगा आँचल सारा है।। जन्म-भूमि से बढ़कर सुंदर, कौन देश है इस धरती पर। इसमें जीना भी प्यारा है, इसमें मरना भी प्यारा है।। चाहे आँधी शोर मचाए, चाहे बिजली आँख दिखाए। हम न झुकेंगे, हम न रुकेंगे, यही हमारा नारा है।। पर्वत-पर्वत पाँव बढ़ाता। सागर की लहरों पर गाता। आसमान में...

सबसे लोकप्रिय

poet-image

केशर की, कलि की पिचकारी

केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...

poet-image

हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...

poet-image

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...

poet-image

अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी

हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...

poet-image

भारत महिमा

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...

ad-image