कविताएँ

Ravindranath thakur roi 3 275x153.jpeg

हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण खोलो¸ रूक सुनो¸ विकल यह नाद कहां से आता है। है आग लगी या कहीं लुटेरे लूट रहे? वह कौन दूर पर गांवों में चिल्लाता है? जनता की छाती भिदें और तुम नींद करो¸ अपने भर तो यह जुल्म नहीं होने दूँगा। तुम बुरा कहो या भला¸ मुझे परवाह नहीं¸ पर दोपहरी में तुम्हें नहीं सोने दूँगा।। हो कहां अग्निधर्मा नवीन ऋषियो? जागो¸ कुछ नयी आग¸ नूतन ज्वाला की सृष्टि करो। शीतल प्रमाद से ऊंघ रहे हैं जो¸ उनकी मखमली सेज पर चिनगारी की वृष्टि करो। गीतों...

Mahadevi varma 1 275x153.jpg

धूप सा तन दीप सी मैं

धूप सा तन दीप सी मैं!  उड़ रहा नित एक सौरभ-धूम-लेखा में बिखर तन, खो रहा निज को अथक आलोक-सांसों में पिघल मन अश्रु से गीला सृजन-पल, औ' विसर्जन पुलक-उज्ज्वल, आ रही अविराम मिट मिट स्वजन ओर समीप सी मैं! सघन घन का चल तुरंगम चक्र झंझा के बनाये, रश्मि विद्युत ले प्रलय-रथ पर भले तुम श्रान्त आये, पंथ में मृदु स्वेद-कण चुन, छांह से भर प्राण उन्मन, तम-जलधि में नेह का मोती रचूंगी सीप सी मैं! धूप-सा तन दीप सी मैं!

Suryakant tripathi nirala 275x153.jpg

केशर की, कलि की पिचकारी

केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात की गात सँवारी । राग-पराग-कपोल किए हैं, लाल-गुलाल अमोल लिए हैं तरू-तरू के तन खोल दिए हैं, आरती जोत-उदोत उतारी- गन्ध-पवन की धूप धवारी । गाए खग-कुल-कण्ठ गीत शत, संग मृदंग तरंग-तीर-हत भजन-मनोरंजन-रत अविरत, राग-राग को फलित किया री- विकल-अंग कल गगन विहारी ।

Img 5389 roi 2 275x153.jpg

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप से तुम तुम से तू होने लगी चाहिए पैग़ामबर दोने तरफ़ लुत्फ़ क्या जब दू-ब-दू होने लगी मेरी रुस्वाई की नौबत आ गई उनकी शोहरत की क़ू-ब-कू़ होने लगी नाजि़र बढ़ गई है इस क़दर आरजू की आरजू होने लगी अब तो मिल कर देखिए क्या रंग हो फिर हमारी जुस्तजू होने लगी 'दाग़' इतराए हुए फिरते हैं आप शायद उनकी आबरू होने लगी.

अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी

हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं बेचारी को। पर वो चीं-चीं करती है घर में तो वो नहीं रहेगी!

भारत महिमा

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे सदा हमारे देव   वचन में सत्य, हृदय में तेज, प्रतिज्ञा मे रहती थी टेव 

Suryakant tripathi nirala 275x153.jpg

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो, भरा दौंगरा उन्ही पर गिरा। उन्ही बीजों को नये पर लगे, उन्ही पौधों से नया रस झिरा। उन्ही खेतों पर गये हल चले, उन्ही माथों पर गये बल पड़े, उन्ही पेड़ों पर नये फल फले, जवानी फिरी जो पानी फिरा। पुरवा हवा की नमी बढ़ी, जूही के जहाँ की लड़ी कढ़ी, सविता ने क्या कविता पढ़ी, बदला है बादलों से सिरा। जग के अपावन धुल गये, ढेले गड़ने वाले थे घुल गये, समता के दृग दोनों तुल गये, तपता गगन घन से घिरा ।

Suryakant tripathi nirala 275x153.jpg

तुम हमारे हो

नहीं मालूम क्यों यहाँ आया ठोकरें खाते हु‌ए दिन बीते। उठा तो पर न सँभलने पाया गिरा व रह गया आँसू पीते। ताब बेताब हु‌ई हठ भी हटी नाम अभिमान का भी छोड़ दिया। देखा तो थी माया की डोर कटी सुना वह कहते हैं, हाँ खूब किया। पर अहो पास छोड़ आते ही वह सब भूत फिर सवार हु‌ए। मुझे गफलत में ज़रा पाते ही फिर वही पहले के से वार हु‌ए। एक भी हाथ सँभाला न गया और कमज़ोरों का बस क्या है। कहा - निर्दय, कहाँ है तेरी दया, मुझे दुख देने में जस क्या है।...

Suryakant tripathi nirala 275x153.jpg

स्नेह-निर्झर बह गया है

स्नेह-निर्झर बह गया है ! रेत ज्यों तन रह गया है । आम की यह डाल जो सूखी दिखी, कह रही है-"अब यहाँ पिक या शिखी नहीं आते; पंक्ति मैं वह हूँ लिखी नहीं जिसका अर्थ-           जीवन दह गया है ।" "दिये हैं मैने जगत को फूल-फल, किया है अपनी प्रतिभा से चकित-चल; पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल-- ठाट जीवन का वही           जो ढह गया है ।" अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा, श्याम तृण पर बैठने को निरुपमा । बह रही है हृदय पर केवल अमा; मै अलक्षित हूँ; यही...

गहन है यह अंधकारा

गहन है यह अंधकारा; स्वार्थ के अवगुंठनों से हुआ है लुंठन हमारा। खड़ी है दीवार जड़ की घेरकर, बोलते है लोग ज्यों मुँह फेरकर इस गगन में नहीं दिनकर; नही शशधर, नही तारा। कल्पना का ही अपार समुद्र यह, गरजता है घेरकर तनु, रुद्र यह, कुछ नही आता समझ में कहाँ है श्यामल किनारा। प्रिय मुझे वह चेतना दो देह की, याद जिससे रहे वंचित गेह की, खोजता फिरता न पाता हुआ, मेरा हृदय हारा।

सबसे लोकप्रिय

poet-image

हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...

poet-image

धूप सा तन दीप सी मैं

धूप सा तन दीप सी मैं!  उड़ रहा...

poet-image

केशर की, कलि की पिचकारी

केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...

poet-image

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...

poet-image

अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी

हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...

ad-image