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रवीन्द्रनाथ ठाकुर

रवीन्द्रनाथ ठाकुर

रवीन्द्रनाथ ठाकुर (बंगाली: রবীন্দ্রনাথ ঠাকুর रोबिन्द्रोनाथ ठाकुर) (७ मई१८६१ – ७ अगस्त१९४१) को गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। वे विश्वविख्यात कविसाहित्यकारदार्शनिक और भारतीय साहित्य के एकमात्र नोबल पुरस्कार विजेता हैं।गुरुदेव बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिनकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान 'आमार सोनार बाँग्ला' गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं।

इस लेखक की रचनाएँ

हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो। श्रवण खोलो¸ रूक सुनो¸ विकल यह नाद कहां से आता है। है आग लगी या कहीं लुटेरे लूट...

विपदा से मेरी रक्षा करना

विपदा से मेरी रक्षा करना मेरी यह प्रार्थना नहीं, विपदा से मैं डरूँ नहीं, इतना ही करना।   ...

पाषाणी

अपूर्वकुमार बी.ए. पास करके ग्रीष्मावकाश में विश्व की महान नगरी कलकत्ता से अपने गांव को लौट रहा था। मार्ग...

मुझे झुका दो, मुझे झुका दो

मुझे झुका दो,मुझे झुका दो   अपने चरण तल में, करो मन विगलित, जीवन विसर्जित नयन जल में. अकेली हूँ...

जब तुम्हारे साथ मेरा खेल हुआ करता था

मेरा खेल साथ तुम्‍हारे जब होता था तब, कौन हो तुम, यह किसे पता था. तब, नहीं था भय, नहीं थी लाज मन में,...

काबुलीवाला

मेरी पाँच बरस की लड़की मिनी से घड़ीभर भी बोले बिना नहीं रहा जाता। एक दिन वह सवेरे-सवेरे ही बोली, "बाबूजी,...

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हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो। श्रवण...

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रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...

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अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी

हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...

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भारत महिमा

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...

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लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो, ...

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