विपदा से मेरी रक्षा करना

भले मेरी सहायता न जुटे अपना बल कभी न टूटे, जग में उठाता रहा क्षति और पाई सिर्फ़ वंचना तो भी मन में कभी न मानूँ क्षय ...

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ध्यान

विपदा से मेरी रक्षा करना

मेरी यह प्रार्थना नहीं,

विपदा से मैं डरूँ नहीं, इतना ही करना।

 

दुख-ताप से व्यथित चित्त को

भले न दे सको सान्त्वना

मैं दुख पर पा सकूँ जय।

 

भले मेरी सहायता न जुटे

अपना बल कभी न टूटे,

जग में उठाता रहा क्षति

और पाई सिर्फ़ वंचना

तो भी मन में कभी न मानूँ क्षय।

 

तुम मेरी रक्षा करना

यह मेरी नहीं प्रार्थना,

पार हो सकूँ बस इतनी शक्ति चाहूँ।

 

मेरा भार हल्का कर

भले न दे सको सान्त्वना

बोझ वहन कर सकूँ, चाहूँ इतना ही।

 

सुख भरे दिनों में सिर झुकाए

तुम्हारा मुख मैं पहचान लूंगा,

दुखभरी रातों में समस्त धरा

जिस दिन करे वंचना

कभी ना करूँ, मैं तुम पर संशय।



(गीतांजलि से. मूल बांग्ला से अनुवाद : रणजीत साहा)

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