बशीर बद्र

बशीर बद्र

डॉ॰ बशीर बद्र (जन्म १५ फ़रवरी १९३६) को उर्दू का वह शायर माना जाता है जिसने कामयाबी की बुलन्दियों को फतेह कर बहुत लम्बी दूरी तक लोगों की दिलों की धड़कनों को अपनी शायरी में उतारा है। साहित्य और नाटक आकेदमी में किए गये योगदानो के लिए उन्हें १९९९ में पद्मश्री से सम्मानित किया गया है।

डॉ॰ बशीर बद्र (जन्म 15 फ़रवरी 1936) को उर्दू का वह शायर माना जाता है जिसने कामयाबी की बुलन्दियों को फतेह कर बहुत लम्बी रेंज के लोगों के दिलों की धड़कानों को अपनी शायरी में उतारा है। इनका पूरा नाम सैयद मोहम्मद बशीर है। भोपाल से ताल्लुकात रखने वाले बशीर बद्र का जन्म कानपुर में हुआ था। आज के मशहूर शायर और गीतकार नुसरत बद्र इनके सुपुत्र हैं।

इस लेखक की रचनाएँ

मेरे बारे में हवाओं से वो कब पूछेगा

मेरे बारे में हवाओं से वो कब पूछेगा खाक जब खाक में मिल जाऐगी तब पूछेगा घर बसाने में ये खतरा है कि...

कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी

कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी, यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता। तुम मेरी ज़िन्दगी हो, ये सच है, ज़िन्दगी का...

ये चाँदनी भी जिन को छूते हुए डरती है

ये चाँदनी भी जिन को छूते हुए डरती है दुनिया उन्हीं फूलों को पैरों से मसलती है शोहरत की बुलंदी भी...

दुआ करो कि ये पौधा सदा हरा ही लगे

दुआ करो कि ये पौधा सदा हरा ही लगे उदासियों से भी चेहरा खिला-खिला ही लगे   ये चाँद तारों का आँचल...

न जी भर के देखा

  कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की उजालों की परियाँ नहाने लगीं नदी गुनगुनाई...

सबसे लोकप्रिय

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हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो। श्रवण...

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रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...

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अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी

हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...

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भारत महिमा

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...

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लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो, ...

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