एक बार नदी बोली

एक बार नदी बोली ! मैँ यूँ ही अविरल बहती जाऊँ ।..

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नदी

एक बार नदी बोली !

मैँ यूँ ही अविरल बहती जाऊँ ।

अपने तट पर गाँव शहर बसाऊँ ।

बिना किये तुमसे कोई आशा ।

मैँ तृप्त करूँ सबकी अभिलाषा ।

मेरे जल से तुम फसल उगाओ ।

लहराती फसल देख मुस्कुराओ ।

भर जाये अन्न से तुम्हारी झोली !

एक बार नदी बोली !

पर्वत शिखरोँ पर जन्म हुआ मेरा ।

चाँदी सा उज्जवल था तन मेरा ।

इठलाती बलखाती मैँ गाती थी ।

अपने यौवन पर मैँ इतराती थी ।

अपने जल मेँ मुखड़ा निहार लेती थी ।

सबको मैँ जल का दान देती थी ।

लेकिन तुमने बना दिया मुझे मटमैली !

एक बार नदी बोली !

तुमको पाला मैने शिशु समान ।

तुम मेँ भरा जीवन का ज्ञान ।

तुमने भी अपना फर्ज निभाया ।

माता कहकर मुझको बुलाया ।

माँ की छवि ही गंदी कर दी ।

तुमने मुझमेँ अस्वच्छता भर दी ।

सोचा होगा माँ तो होती है भोली !

एक बार नदी बोली !

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