दूर से दूर तलक एक भी दरख्त न था

उन्हीं फ़क़ीरों ने इतिहास बनाया है यहाँ, जिन पे इतिहास को लिखने के लिए वक्त न था ...

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गोपालदास "नीरज"

दूर से दूर तलक एक भी दरख्त न था|

तुम्हारे घर का सफ़र इस क़दर सख्त न था।

 

इतने मसरूफ़ थे हम जाने के तैयारी में,

खड़े थे तुम और तुम्हें देखने का वक्त न था।

 

मैं जिस की खोज में ख़ुद खो गया था मेले में,

कहीं वो मेरा ही एहसास तो कमबख्त न था।

 

जो ज़ुल्म सह के भी चुप रह गया न ख़ौल उठा,

वो और कुछ हो मगर आदमी का रक्त न था।

 

उन्हीं फ़क़ीरों ने इतिहास बनाया है यहाँ,

जिन पे इतिहास को लिखने के लिए वक्त न था।

 

शराब कर के पिया उस ने ज़हर जीवन भर,

हमारे शहर में 'नीरज' सा कोई मस्त न था।

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