ब्राह्म मुर्हूत : स्वस्तिवाचन

उस द्वार से गु जरो जो मैं ने तुम्हारे लिए खोला है, उस अन्धकार से नहीं जिस की गहराई को बार-बार मैं ने तुम्हारी रक्षा की भावना से टटोला है ...

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अज्ञेय

जियो उस प्यार में

जो मैं ने तुम्हें दिया है,

उस दु:ख में नहीं, जिसे

 

बेझिझक मैं ने पिया है।

उस गान में जियो

जो मैं ने तुम्हें सुनाया है,

उस आह में नहीं, जिसे

 

मैं ने तुम से छिपाया है।

उस द्वार से गु जरो

जो मैं ने तुम्हारे लिए खोला है,

उस अन्धकार से नहीं

 

जिस की गहराई को

बार-बार मैं ने तुम्हारी रक्षा की

भावना से टटोला है।

वह छादन तुम्हारा घर हो

 

जिस मैं असीसों से बुनता हूँ, बुनूँगा;

वे काँटे-गोखरू तो मेरे हैं


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