मेरी छबि ला दो

मेरी छबि उर-उर में ला दो! मेरे नयनों से ये सपने समझा दो ...

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सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

मेरी छबि उर-उर में ला दो!
मेरे नयनों से ये सपने समझा दो!

जिस स्वर से भरे नवल नीरद,
हुए प्राण पावन गा हुआ हृदय भी गदगद,
जिस स्वर-वर्षा ने भर दिये सरित-सर-सागर,
मेरी यह धरा धन्य हुई भरा नीलाम्बर,
वह स्वर शर्मद उनके कण्ठों में गा दो!

जिस गति से नयन-नयन मिलते,
खिलते हैं हृदय, कमल के दल-के-दल हिलते,
जिस गति की सहज सुमति जगा जन्म-मृत्यु-विरति
लाती है जीवन से जीवन की परमारति,
चरण-नयन-हृदय-वचन को तुम सिखला दो!

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