वायु बहती शीत-निष्ठुर

वायु बहती शीत-निष्ठुर! ताप जीवन श्वास वाली ...

Harivanshrai 600x350.jpg

हरिवंशराय बच्चन

वायु बहती शीत-निष्ठुर!


ताप जीवन श्वास वाली,
मृत्यु हिम उच्छवास वाली।
क्या जला, जलकर बुझा, ठंढा हुआ फिर प्रकृति का उर!
वायु बहती शीत-निष्ठुर!

पड़ गया पाला धरा पर,
तृण, लता, तरु-दल ठिठुरकर
हो गए निर्जीव से--यह देख मेरा उर भयातुर!
वायु बहती शीत-निष्ठुर!

थी न सब दिन त्रासदाता
वायु ऐसी--यह बताता
एक जोड़ा पेंडुकी का डाल पर बैठा सिकुड़-जुड़!
वायु बहती शीत-निष्ठुर!

DISCUSSION

blog comments powered by Disqus

सबसे लोकप्रिय

poet-image

हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो। श्रवण...

poet-image

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...

poet-image

अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी

हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...

poet-image

भारत महिमा

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...

poet-image

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो, ...

ad-image