पंथ होने दो अपरिचित

पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला ...

Mahadevi varma 1 600x350.jpg

महादेवी वर्मा

पंथ होने दो अपरिचित

प्राण रहने दो अकेला


घेर ले छाया अमा बन,

आज कज्जल-अश्रुओं में रिमझिमा ले यह घिरा घन,

और होंगे नयन सूखे,

तिल बुझे औ' पलक रूखे,

आर्द्र चितवन में यहाँ

शत विद्युतों में दीप खेला


और होंगे चरण हारे,

अन्य हैं जो लौटते दे शूल को संकल्प सारे;

दुखव्रती निर्माण-उन्मद

यह अमरता नापते पद;

बाँध देंगे अंक-संसृति से तिमिर में स्वर्ण बेला

 

दूसरी होगी कहानी

शून्य में जिसके मिटे स्वर, धूलि में खोई निशानी;

आज जिसपर प्यार विस्मृत ,

मैं लगाती चल रही नित,

मोतियों की हाट औ, चिनगारियों का एक मेला

 

हास का मधु-दूत भेजो,

रोष की भ्रूभंगिमा पतझार को चाहे सहेजो;

ले मिलेगा उर अचंचल

वेदना-जल स्वप्न-शतदल,

जान लो, वह मिलन-एकाकी विरह में है दुकेला

 

(संग्रह: दीपशिखा)


DISCUSSION

blog comments powered by Disqus

सबसे लोकप्रिय

poet-image

हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो। श्रवण...

poet-image

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...

poet-image

अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी

हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...

poet-image

भारत महिमा

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...

poet-image

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो, ...

ad-image