मेरी वीणा में स्वर भर दो

मैं राही एकाकी तो क्या मंजिल तय करनी है, मुझको; रहने दो राह अपरिचित ही इसकी परवाह नहीं मुझको ...

Dwarika prasad maheshwaree 600x350.jpg

द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

मेरी वीणा में स्वर भर दो!

 

मैं माँग रहा कुछ और नहीं

केवल जीवन की साध यही,

इसको पाने ही जीवन की

साधना-सरित निर्बाध बही

 

उड़ सकूँ काव्य के नभ में मैं

उन्मुक्त कल्पना को पर दो।

 

केवल तुमको अर्पित करने

भावों के सुमन खिलाए हैं

पहिनाने तुमको ही मैंने

गीतों के हार सजाए हैं!

 

अपने सौरभ के रस-कण से

हर भाव-सुमन सुरभित कर दो।

 

मैं दीपक वह जिसके उर में

बस एक स्नेह की राग भरी

जिसने तिल-तिल जल-जल अविरल

निशि के केशों में माँग भरी।

 

बुझ जाय न साँसों की बाती

छू तनिक उसे ऊपर कर दो।

 

मैं राही एकाकी तो क्या

मंजिल तय करनी है, मुझको;

रहने दो राह अपरिचित ही

इसकी परवाह नहीं मुझको।

 

कर लूँगा मैं जग से परिचय

केवल गीतों में लय भर दो।



- (संग्रह: फूल और शूल)


DISCUSSION

blog comments powered by Disqus

सबसे लोकप्रिय

poet-image

हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो। श्रवण...

poet-image

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...

poet-image

अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी

हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...

poet-image

भारत महिमा

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...

poet-image

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो, ...

ad-image